हिमालय की सुंदर वादियों में बसे चंबा जिले में जलविद्युत परियोजनाओं का भविष्य अब अधर में लटक गया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम (FCA) के नियमों में बदलाव किया है, जिसके तहत परियोजनाओं को वन भूमि के उपयोग के लिए नए अध्ययन और मंजूरी की आवश्यकता है। इस बदलाव के कारण रावी बेसिन की समग्र प्रभाव आकलन और वहन क्षमता अध्ययन (क्युमुलेटिव इम्पेक्ट असेस्मेंट और कैरिंग कैपेसिटी स्टडी)अभी तक पूरा नहीं हो पाया है, जिससे परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
चंबा में जलविद्युत परियोजनाएं लंबे समय से प्रस्तावित हैं, जिनमें लगभग 40-50 छोटी और बड़ी परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं से न केवल बिजली उत्पादन होगा बल्कि राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में भी योगदान मिलेगा। हालांकि, नियमों में हालिया बदलाव के कारण ये परियोजनाएं फिलहाल अधर में हैं।
वन संरक्षण अधिनियम (FCA) में बदलाव
केंद्रीय मंत्रालय द्वारा FCA में किए गए बदलाव के तहत अब वन भूमि के उपयोग से पहले विस्तृत पर्यावरणीय आकलन और संबंधित नदी बेसिन का वहन क्षमता अध्ययन अनिवार्य कर दिया गया है। इसका उद्देश्य एक ही क्षेत्र में कई परियोजनाओं के दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करना है।
रावी बेसिन का अपूर्ण अध्ययन
रावी बेसिन का समग्र प्रभाव आकलन और वहन क्षमता अध्ययन अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जिससे परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिल पाई है। यह अध्ययन 2013 में शुरू होना था, लेकिन अब तक पूरा नहीं हुआ है, जिससे जिले की सभी जलविद्युत परियोजनाएं रुकी हुई हैं।
सतलुज और ब्यास बेसिन की तुलना
सतलुज और ब्यास बेसिन का समग्र प्रभाव आकलन पूरा हो चुका है, जिससे उन क्षेत्रों में परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं। चंबा में इस अध्ययन के पूरा न होने के कारण स्थानीय निवेशकों और हितधारकों में निराशा है।
निवेशकों की मांगें
चंबा की जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश करने वाले निवेशक मांग कर रहे हैं कि जब तक रावी बेसिन का अध्ययन पूरा नहीं हो जाता, तब तक अस्थायी रूप से परियोजनाओं को जारी रखने की अनुमति दी जाए। उनका तर्क है कि अन्य बेसिनों में अध्ययन पूरा हो चुका है, तो चंबा को भी वही सुविधा मिलनी चाहिए।
स्थानीय रोजगार पर असर
इन जलविद्युत परियोजनाओं से स्थानीय निवासियों के लिए कई रोजगार के अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है। परियोजनाओं की देरी से स्थानीय समुदायों में रोजगार और आर्थिक विकास की संभावनाएं कम हो रही हैं।
लाडा फंड पर प्रभाव
जलविद्युत परियोजनाओं से मिलने वाला लोकल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (LADA) फंड भी प्रभावित हो रहा है। यह फंड विभिन्न सामुदायिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करता है, लेकिन परियोजनाओं की देरी से यह फंड संकट में है।
सरकारी प्रतिक्रिया
सरकार ने रावी बेसिन अध्ययन में देरी को स्वीकार किया है, लेकिन इसके पूरा होने के लिए कोई ठोस समय सीमा नहीं दी है। इससे निवेशकों और स्थानीय समुदायों में अनिश्चितता बढ़ रही है।
हितधारकों की प्रतिक्रियाएं
स्थानीय नेता, निवेशक और पर्यावरण कार्यकर्ता सभी ने अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है। सभी का मानना है कि इस देरी को दूर करने और चंबा की जलविद्युत क्षमता को सुरक्षित रखने के लिए त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।
चंबा पर आर्थिक प्रभाव
परियोजनाओं की देरी का आर्थिक प्रभाव काफी बड़ा है। जलविद्युत परियोजनाओं से राज्य और स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न होने की उम्मीद थी। चल रही अनिश्चितता से ये आर्थिक लाभ खतरे में हैं और क्षेत्र के विकास को रोक रही है।
पर्यावरणीय चिंताएं
पर्यावरणविदों का मानना है कि समग्र प्रभाव आकलन सतत विकास के लिए जरूरी हैं, लेकिन लंबे समय तक देरी हानिकारक हो सकती है। वे विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण के बीच संतुलन की वकालत करते हैं।
राजनीतिक परिणाम
परियोजनाओं की देरी से राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है। स्थानीय राजनेता प्रक्रिया को तेज करने के दबाव में हैं और इससे उनके राजनीतिक करियर पर भी असर पड़ सकता है।
हिमाचल प्रदेश में नवीकरणीय ऊर्जा का भविष्य
हिमाचल प्रदेश ने नवीकरणीय ऊर्जा में अग्रणी बनने की महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं, जिनमें जलविद्युत ऊर्जा मुख्य भूमिका निभाती है। चंबा में देरी राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्रभावित कर सकती है
केंद्र सरकार की भूमिका
रावी बेसिन अध्ययन को तेजी से पूरा करने में केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। अध्ययन के शीघ्र पूरा होने से जलविद्युत परियोजनाओं की प्रगति सुनिश्चित होगी और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
संभावित समाधान
इस समस्या के समाधान में रावी बेसिन अध्ययन को तेजी से पूरा करना, परियोजनाओं को अंतरिम राहत देना और हितधारकों के बीच बेहतर संचार शामिल है। स्पष्ट समयसीमा और पारदर्शी प्रक्रियाएं मौजूदा समस्याओं को हल करने की कुंजी हो सकती हैं।
जलविद्युत ऊर्जा का महत्व
जलविद्युत ऊर्जा भारत की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक विश्वसनीय, स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है जो जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम कर सकता है और ऊर्जा सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
चंबा की जलविद्युत क्षमता
चंबा की भौगोलिक स्थिति और जलविज्ञान इसे जलविद्युत विकास के लिए आदर्श बनाते हैं। रावी नदी और उसकी सहायक नदियां बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं प्रदान करती हैं।
निवेशकों की चुनौतियां
निवेशकों को नियामक बाधाओं और पर्यावरणीय चिंताओं का सामना करना पड़ता है। परियोजना अनुमोदनों की अनिश्चितता से वित्तीय जोखिम बढ़ता है और निवेश पर वापसी में देरी होती है।
समग्र प्रभाव आकलन की भूमिका
समग्र प्रभाव आकलन कई परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये अध्ययन सतत विकास सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
स्थानीय समुदाय की दृष्टि
स्थानीय समुदाय विकास और पर्यावरण संरक्षण के संघर्ष में फंसे हुए हैं। वे जलविद्युत परियोजनाओं के आर्थिक लाभों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन संभावित पर्यावरणीय नुकसान और विस्थापन के बारे में भी चिंतित हैं।
ग्यारह साल का लंबा इंतजार
रावी बेसिन अध्ययन के निर्देश ग्यारह साल पहले जारी किए गए थे, लेकिन प्रगति नगण्य रही है। यह दीर्घकालिक देरी निवेशकों, स्थानीय निवासियों और नीति निर्माताओं की धैर्य की परीक्षा ले रही है।
रावी बेसिन का महत्व
रावी बेसिन जलविद्युत विकास और क्षेत्रीय जल प्रबंधन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसका समग्र प्रभाव आकलन पूरा होना इसके पूर्ण क्षमता को अनलॉक करने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
चंबा का भविष्य
वर्तमान चुनौतियों के बावजूद, चंबा में जलविद्युत परियोजनाओं का भविष्य उज्ज्वल है। सरकार, निवेशकों और स्थानीय हितधारकों के संयुक्त प्रयासों से ये परियोजनाएं सतत विकास और आर्थिक वृद्धि के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
निष्कर्ष
चंबा में जलविद्युत परियोजनाएं एक चौराहे पर हैं और उनका भविष्य रावी बेसिन अध्ययन के समय पर पूरा होने पर निर्भर करता है। नियामक और पर्यावरणीय चुनौतियों को हल करने के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण आवश्यक होगा, जिससे चंबा की जलविद्युत क्षमता को जिम्मेदारी और सतत रूप से उपयोग किया जा सके। इन परियोजनाओं के आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ अत्यधिक हैं, जिससे वर्तमान बाधाओं को दूर करना और क्षेत्र के लिए एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है।
समाचार स्त्रोत : दिव्य हिमाचल
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FAQs
चंबा में जलविद्युत परियोजनाएं क्यों देरी हो रही हैं?
परियोजनाएं रावी बेसिन के अधूरे समग्र प्रभाव आकलन के कारण देरी हो रही हैं, जिसे हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम (FCA) में बदलाव के तहत अनिवार्य किया गया है।
वन संरक्षण अधिनियम (FCA) क्या है?
FCA एक कानून है जो गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग को विनियमित करता है, जिसमें अनुमोदन से पहले विभिन्न पर्यावरणीय आकलन की आवश्यकता होती है।
रावी बेसिन अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?
यह अध्ययन रावी बेसिन में कई जलविद्युत परियोजनाओं के समग्र पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करता है, जिससे सतत विकास सुनिश्चित होता है।
लाडा फंड क्या है?
लोकल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (LADA) फंड जलविद्युत परियोजनाओं द्वारा वित्त पोषित होता है और स्थानीय विकास पहलों का समर्थन करता है।
परियोजना अनुमोदनों में देरी से स्थानीय समुदाय कैसे प्रभावित होते हैं?
परियोजना अनुमोदनों में देरी से स्थानीय समुदाय प्रभावित होते हैं, क्योंकि जलविद्युत परियोजनाओं से रोजगार सृजन और आर्थिक विकास की संभावनाएं अधर में हैं।
परियोजना अनुमोदनों को तेज करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
रावी बेसिन अध्ययन को तेजी से पूरा करना, चल रही परियोजनाओं को अंतरिम राहत प्रदान करना, और हितधारकों के बीच संचार में सुधार करके अनुमोदनों को तेज करने में मदद मिल सकती है।