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टैरिफ विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में HPSEBL की बड़ी जीत

KKK हाइड्रो पावर लिमिटेड बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड एवं अन्य के मामले में टैरिफ विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में HPSEBL की बड़ी जीत हुई है । सुप्रीम कोर्ट ने KKK हाइड्रो पावर लिमिटेड की अपील खारिज करते हुए हिमाचल विद्युत बोर्ड(HPSEBL)के पक्ष में 29 अगस्त 2025 को फैसला सुनाते हुए लंबे समय से चल रहे विवाद का अंत कर दिया है । भविष्य में यह उचत्तम न्यायलय का निर्णय हाइड्रो टैरिफ विवादों के निपटारे के लिए मील का पत्थर साबित होगा । आइये जानते हैं क्या था पूरा मामला ?

सुप्रीम कोर्ट में HPSEBL की बड़ी जीत

KKK Hydro Power ने साल 2000 में 3 MW का प्रोजेक्ट लगाया था। उस समय हिमाचल बिजली बोर्ड के साथ हुए बिजली खरीद समझोते (PPA) में बिजली खरीद की दरें ₹2.50 प्रति यूनिट फिक्स की गई थी।

HPERC की स्थापना के बाद KKK हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट ने 1.9 MW और जोड़कर कुल क्षमता 4.9 MW कर ली 2010 में HPERC (हिमाचल विद्युत नियामक आयोग) की बिना अनुमति के HPSEB से एकतरफा तौर पर एक पूरक समझोते पर हस्ताक्षर किए और बिजली खरीद दरें ₹2.95 निर्धारित हुई।

विवाद तब शुरू हुआ जब HPERC ने यह अग्रीमेंट खारिज कर दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि बिजली खरीद कि दरें ₹2.50 प्रति यूनिट ही रहेंगी ।

परंतु KKK हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट दावा किया कि अब उसे नई पॉलिसी के हिसाब से ज्यादा रेट (₹2.95) मिलना चाहिए।कंपनी ने पुराने समय से बकाया भी मांगा, लेकिन HPSEBL ने KKK हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के दावे को चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए बड़े ही स्पष्टता से कहा:

  1. कंपनी और बोर्ड आपसी सहमति से टैरिफ नहीं बदल सकते, इसके लिए भारतीय विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 86 के अनुसार रेगुलेटरी कमिशन की मंजूरी जरूरी है।
  2. पुराने 3 MW प्रोजेक्ट पर ₹2.50 फिक्स रेट ही लागू होगा, क्योंकि उसका एग्रीमेंट 2000 में हुआ था और उसमें लिखा था कि दर कभी नहीं बदलेगी।
  3. नए 1.9 MW हिस्से पर ही 2007 वाले नियमों के हिसाब से बढ़ी हुई दर लागू होगी।
  4. क्योंकि दोनों हिस्से एक ही जगह से जुड़े हैं, इसलिए पूरे प्रोजेक्ट के लिए औसत दर ₹2.60 प्रति यूनिट तय होगी।

HPSEBL की जीत खास क्यों है?

यह फैसला HPSEBL के लिए बड़ी राहत वाला है, क्योंकि अगर KKK हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की दलील सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान ली जाती, तो हिमाचल विद्युत बोर्ड को करोड़ों रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि कानून से बाहर जाकर रेगुलेटरी कमिशन (विद्युत नियामक आयोग ) की मंजूरी के बिना निजी समझौते से टैरिफ नहीं बढ़ाया जा सकता।

इस फैसले के बाद यह साफ है कि बिजली टैरिफ पर अंतिम मुहर हमेशा रेगुलेटरी कमिशन (विद्युत नियामक आयोग ) की ही होगी, न कि कंपनियों और बोर्ड के बीच के निजी समझौतों की।

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