क्या आपको पता है कि हमारे बिजली बिल से लेकर बिजली वितरण तक कई ऐसे फैसले हैं जो एक स्वतंत्र संस्था द्वारा किए जाते हैं, जिसे राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC) कहते हैं? जी हां, यह आयोग इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि बिजली उपभोक्ताओं के अधिकारों और हितों की रक्षा हो। हाल ही में विद्युत अधिनियम धारा 108 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है, जिसने विद्युत अधिनियम की धारा 108 के तहत राज्य और केंद्र सरकार के निर्देशों के संबंध में आयोगों की स्वतंत्रता को स्पष्ट किया है। आइए जानते हैं इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसका आने वाले समय में महत्व ।
राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC) एक स्वायत्त निकाय व संस्था होती है, जो राज्य में बिजली से जुड़े तमाम मुद्दों पर नज़र रखती है। इसकी जिम्मेदारी है कि बिजली वितरण , बिजली की दरों का निर्धारण , उपभोक्ता शिकायतों का निपटारा सही तरीक़े से हो और बिजली कंपनियों के साथ हुए समझौतों पर नज़र रखी जाए। इसका मुख्य उद्देश्य है कि बिजली उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है ।
विद्युत अधिनियम की धारा 108 क्या कहती है ?
विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 राज्य या केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह विद्युत नियामक आयोग (State Electricity Regulatory Commission) को निर्देश दे सके। लेकिन यह निर्देश सिर्फ नीतिगत मुद्दों पर ही दिये जा सकते हैं , नियामक आयोग के न्यायिक विवेक पर नहीं । इस धारा के तहत, राज्य या केंद्र सरकार आयोग को “निर्देशित” कर सकती है, लेकिन आयोग को उन निर्देशों का पालन करना “बाध्यकारी” नहीं कर सकती ।
क्या आया है विद्युत अधिनियम धारा 108 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला?
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब केरल सरकार ने धारा 108 के तहत केरल राज्य विद्युत नियामक आयोग (KSERC) को कुछ बिजली आपूर्ति समझौतों (PSAs) पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था । केरल सरकार को लगा कि अगर ये PSAs मंज़ूर नहीं हुए, तो राज्य को ऊंची दरों पर बिजली खरीदनी पड़ेगी, जिससे बिजली की लागत बढ़ जाएगी और उसका बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
KSERC ने सरकार के निर्देश को मानते हुए PSAs को मंज़ूरी दे दी, क्योंकि उसे लगा कि वह धारा 108 के तहत सरकार के निर्देशों से बाध्य है। परन्तु इस मामले में अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) हस्तक्षेप किया गया , और स्पष्ट किया कि संबधित आयोग सरकार के निर्देशों से बाध्य नहीं है।
परंतु इस फैसले के खिलाफ केरल राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड (KSEBL) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी । इस याचिका की सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने APTEL के इस फैसले को सही ठहराया और कहा कि राज्य विद्युत नियामक आयोग इस मामले में विद्युत अधिनियम की धारा 108 के तहत सरकार (केंद्र/राज्य) के निर्देश मानने के लिए बाध्य नहीं है । सरकार विद्युत अधिनियम की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को केवल नीतिगत मामलों में निर्देश दे सकती है न की नियामक आयोग के न्यायिक विवेक पर ।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का भविष्य में क्या प्रभाव होगा ?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर सिर्फ केरल पर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के विद्युत नियामक आयोगों पर पड़ेगा। अब यह साफ हो गया है कि राज्य या केंद्र सरकार धारा 108 के तहत राज्य विद्युत नियामक आयोग ( SERC ) को कोई निर्देश तो दे सकती है, लेकिन आयोग उन निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगा। इस फैसले से आयोगों की स्वायत्तता को और मजबूती मिलेगी , जिससे वे अपने न्यायिक विवेक से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के फैसले कर सकेंगे।
इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर भी होगा, क्योंकि अब विद्युत नियामक आयोग स्वतंत्र रूप से उपभोक्ताओं के हित में फैसले ले पाएंगे, चाहे वह बिजली की दरों का मामला हो या फिर बिजली आपूर्ति के समझौतों का। विद्युत अधिनियम धारा 108 पर सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से यह तय हो गया है कि आयोगों की न्यायिक स्वतंत्रता में कोई दखलअंदाज़ी नहीं की जाएगी।
समाचार स्त्रोत : लाईव लॉ.in
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